सुनो सुनो एक गाथा अहंकार के विनाश की ,
है ये कहानी एक राजा रानी के अभिमान की।
एक था राजा रावण ,तीनो लोको में विख्यात बड़ा ,
महाज्ञानी-महापंडित-महाभिमानी महायोद्धा ,
ऐसा था उसका नाम बड़ा।
सोने की थी उसकी लंका,ऐसा था सम्राज्य बड़ा।
अहंकार था बहुत उसके अंदर ,
इसलिए वो समझता था खुद तो ईश्वर।
ऐसा था वो महाराजा रावण।
आगे की कहानी में है मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम।
सूर्य के तेज से सुसज्जित-महापराक्रमी -मर्यादा पुरुषोत्तम ,
महाज्ञानी -धर्म रक्षक-कौशल्या के नंदन थे प्रभु राजा राम।
पिता के वचन की रक्षा को चौदह वर्ष का वनवास भी स्वीकार किया ,
ऐसे थे प्रभु राजा राम।
लखन सिया संग चौदह वरस वन-वन भटके वो थे धर्म संस्थापक राजा राम।
कुदृष्टि डाली दुराचारी रावण ने माता सीता के सम्मान पर,
और किया छल से हरण उनका अपने शक्ति के गुमान पर।
ना थे घोड़े,ना थे हाथी,ना कोई तलवार संग,
तीर धनुष और बानरो की सेना के बल पर किया कूंच प्रभु राम ने।
तोड़ दिया मनोबल रावण का.और मार गिराया दशानन को युद्ध के मैदान में।
अंत समय जब छटा अँधेरा,अंहंकार का-प्रतिशोध का।
दस शीषो के स्वामी ने नमन किया श्री राम का,
क्षमा मांगी अपने अनन्य पाप को ,
बोला सीता मैया है क्षमा करे उसके अपराध को।
हुयी विजय धर्म की अधर्म पे ,और सब ने पूजा,
सिया संग राम लखन हनुमान को।
-: जय श्री राम :-