बेटी हूँ मैं कोई बोझ नहीं _सम्मान हूँ मैं कोई रोष नहीं,
है मेरी भी धड़कन अपनी _रब ने दिए है मुझे भी अधिकार सभी।
ना देखो मुझको ऐसे तुम_ इंसान हूँ मैं इंसा जैसी,
क्यों बांधे है बन्धन इतने _कोई बंदी नहीं, मैं हूँ बेटी।
जाने क्यों मुझसे सब रूठे है _जाने क्यों मेरे जन्म से यूँ रूठे है,
नहीं समझ पा रही हूँ मैं इस मुश्किल को_ कि क्यों मेरी साँसों में यूँ बन्दिशें है।
क्यों दुनिया में आना मेरा अधिकार नही,
क्यों ज़िन्दगी को गले लगाना मेरा अधिकार नहीं।
आखिर है क्या खता मेरी_कोई तो सुलझा दे ये मुश्किल मेरी।
बेटे की चाह गलत नहीं पर बेटी को जन्म से पहले ही मारना भी तो सही नहीं,
माना बेटे कुल दीपक है पर बेटी भी कुल गौरव से कम तो नहीं।
ख़त्म करो इस बुराई को _इंसानियत को ना ख़त्म करो ,
समाज की कुप्रथाओ के कारण _ बेटी का ना_अंत करो।
बेटी हूँ मैं कोई बोझ नहीं _सम्मान हूँ मैं कोई रोष नहीं।
है मेरी भी धड़कन अपनी _रब ने दिए है मुझे भी अधिकार सभी।
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