रूकती हूँ मै ,गिरती भी हूँ उठती भी हूँ ,
और फिर आगे बढ़ती भी हूँ मै।
गिर के उठना ,उठ के गिरना ,
फिर भी आगे बढ़ते रहना।
है दिल का ये जज़्बा जिसे ,
खोना ना कभी -रोना ना कभी।
मंजिल दूर ही सही,रास्ता कठोर ही सही,
सामने रेत का तूफ़ान ही सही,
रुकना ना कभी -झुकना ना कभी।
अगर मन में हौसलों की एक चिंगारी हो,
और खुद पे विश्वास भी भारी हो।
हर मंजिल तब आसान लगे ,
हर मुश्किल भी आगे बढ़ने की पहचान लगे।
जब पा लोगे बुलंदियां आसमान की ,
तब याद आएंगी ये घड़ियां इम्तहान की।
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